मेरे गांव में बहुत सारी समस्याएं थीं। हमे नल से पानी लेने के लिए बहुत लंबी लाइन लगानी पड़ती थी।
हमे दूसरों के द्वारा दिए गए भोजन का इंतजार करना पड़ता था।
चोरों के कारण हमें अपने अगर जल्दी बंद करने पड़ते थे।
बहुत से बच्चों ने बीच मे ही विद्यालय छोड़ दिया।
कम उम्र की लड़कियां दूसरे गांव में नौकरानी का काम करती थीं।
कम उम्र के लड़के गांव में घूमते रहते थे जबकि बाकी दूसरो के खेतों में काम करते थे।
जब हवा चलती तो बेकार पड़े कागज़ पेड़ों और बाडों से लटक जाते थे।
असावधानी से फेंके गए कांच के टुकड़ों से लोग घायल हो जाते थे।
एक दिन, नल सुख गया और हमारे बर्तन खाली रह गए।
मेरे पिता ने घर घर जाकर लोगों से अपील की कि वो गांव की बैठक में आए।
एक बड़े पेड़ के नीचे लोग इक्क्ठा हुए और उन्होंने सुना।
मेरे पिता खड़े हुए और कहा "हमारी समस्याओं को सुलझाने के लिए हमे साथ मिलकर काम करना होगा"।
पेड़ की डाली पर बैठे आठ वर्षीय जुमा चिलाया "मैं सफाई में मदद कर सकता हूँ"।
एक महिला ने कहा "औरतें मेरे साथ मिलकर फसल उगा सकती हैं"।
एक और आदमी खड़ा हुआ और बोला "आदमियों को कुआं खोदना चाहिए"।
हम ने एक साथ एक स्वर में ज़ोर से कहा "हमे अपनी ज़िंदगी जरूर बदलेंगे"। उस दिन से हम अपनी समस्याओं को हल करने के लिए साथ काम करते हैं।
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